उद्देश्य और कार्य
संगठन की विशिष्टियां कृत्य और कर्तव्य
प्रस्तावना – देश और समाज की संस्कृति की प्रमुख सम्वाहक भाषा होती है। भाषा मात्र विचारों की सम्वाहक नहीं होती अपितु देश और समाज के ऐतिहासिक, राजनैतिक सामाजिक विचारों आन्दोलनों सहित्य की विभिन्न धाराओं की भी संरक्षिका है उत्तराखण्ड में वैदिक काल में संस्कृत का प्रचलन था, जिसके पुष्ठ प्रमाण पुराणों, उपनिषदों, कालिदास के साहित्य आदि में उपलब्ध है। शौरसेनी उपभ्रंश से उद्भव होने वाली उत्तराखण्ड की दोनों प्रमुख बोलियों गढ़वाली व कुमाँऊनी तत्कालीन राजाओं की राजभाषा रही है। कालान्तर में सम्पूर्ण देश के साथ-साथ इस राज्य ने भी राष्ट्रीय आन्दोलनों सुधार कार्यों एवं समाचार पत्रों के माध्यम के रूप में हिन्दी को स्वीकार किया। राज्य की बोलियां जहां आज भी सम्पर्क भाषा के रूप में कार्य कर रही है, वहीं राजभाषा के रूप में हिन्दी का प्रयोग किया जा रहा है। हर्ष का विषय है कि संस्कृत भाषा को इस राज्य ने प्रथम बार द्वितीय राजभाषा के रूप में स्वीकार किया है। उत्तराखण्ड पौराणिक सांस्कृतिक साहित्यिक एवं पर्यटन की भूमि है। यहां पर भारतीय भाषा को बोलने वाले अधिसंख्य लोग निवास करते हैं। राज्य सरकार ने उत्तराखण्ड में प्रचलित भाषाओं के संरक्षण प्रचार-प्रसार के लिए निम्नलिखित संस्थान एवं अकादमियों की स्थापना की है:-
- उत्तराखण्ड भाषा संस्थान – 10 फरवरी, 2010
- डा. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल हिन्दी अकादमी उत्तराखण्ड – 11 फरवरी, 2010
- उत्तराखण्ड उर्दू अकादमी – 22 जुलाई, 2013
- उत्तराखण्ड पंजाबी अकादमी – 22 जुलाई, 2013
- उत्तराखण्ड लोकभाषा व बोली अकादमी -10 अगस्त, 2016
उत्तराखण्ड भाषा संस्थान, देहरादून का गठन
(भाषा विभाग, उत्तराखण्ड शासन के कार्यालय ज्ञाप संख्या-81/xxxix-भा0वि0-20 (सा0)/2009 देहरादूनः दिनांक 25 सितम्बर, 2009)
कार्यालय-ज्ञाप
भारत का संविधान के अनुच्छेद – 345 और 351 तथा आठवीं अनुसूची में वर्णित भारतीय भाषाओं के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषा एवं बोलियों के विकास एवं संवर्द्धन हेतु उत्तराखण्ड राज्य में उत्तराखण्ड शासन के भाषा विभाग के अधीन उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की स्थापना प्रस्तावित है। सोसाइटी रजिस्ट्रेशन ऐक्ट, 1860 के अन्तर्गत उक्त संस्था का रजिस्ट्रीकरण काराया जायेगा। अतएव राज्यपाल, उत्तराखण्ड भाषा संस्थान गठित किये जाने की सहर्ष स्वीकृति प्रदान करते हैं।
उत्तराखण्ड भाषा संस्थान द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय/क्षेत्रीय भाषा एवं बोलियों का विकास एवं संवर्द्धन, शोध कार्य, मानकीकरण, विश्वस्तरीय पुस्तकालय की स्थापना, विश्व की भाषाओं के शिक्षण, प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना, अनुवाद कार्य, शब्द कोषों का निर्माण प्राचीन भारतीय भाषाओं की पाण्डुलिपियों की खोज, उनका संरक्षण, आधुनिक यंत्रों के माध्यम से उन्हें सुरक्षित करने की योजनाओं को क्रियान्वित किया जायेगा। उक्त के अतिरिक्त विशेष रूप से संस्थान द्वारा सरकारी विभागों में प्रयोग की जाने वाली पुस्तकों, प्रपत्रों आदि के प्रकाशन की कार्यवाही सम्पादित की जायेगी।
- संस्था का नाम – उत्तराखण्ड भाषा संस्थान होगा।
- मुख्यालय – उत्तराखण्ड भाषा संस्थान का मुख्यालय जनपद देहरादून में होगा। समुचित व्यवस्था होने तक संस्थान का कार्य भाषा विभाग उत्तराखण्ड शासन द्वारा सम्पादित किया जायेगा।
- संस्थान के उद्देश्य एवं कार्य निम्नलिखित होंगे, अर्थात् –
- उत्तराखण्ड भाषा संस्थान, उत्तराखण्ड शासन की कार्यदायी संस्था के रूप में सम्पूर्ण प्रदेश में कार्य करेगा और भाषा सम्बन्धी विकास योजनाओं एवं क्रिया-कलापों का संचालन करेगा। आवश्यकतानुसार यह संस्थान उत्तराखण्ड शासन के लिए राज्य हित में भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों व संघीय राज्यों में भी भाषा सम्बन्धी कार्य सम्पादित करेगा।
- मुख्यतः इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य और चिकित्सा से सम्बन्धित हिन्दी शब्दकोष पाठ्य-पुस्तकों एवं पत्रिकाओं के अतिरिक्त तकनीकी, प्रशासनिक व प्रबंधकीय हिन्दी शब्दकोष एवं विधिक तथा अन्य आधुनिक विषयों से सम्बन्धित पाठ्य-पुस्तकों एवं शोध पत्रिकाओं/निर्णय पत्रिकाओं हिन्दी में लेखन, अनुवाद एवं प्रकाशन। साहित्यिक/शोध पत्रिका का प्रकाशन करना।
- इस संस्थान में राज्य की क्षेत्रीय भाषा एवं बोली के साहित्य का प्रकाशन एवं प्रोत्साहन का कार्य किया जायेगा। क्षेत्रीय भाषा एवं बोली के शिक्षण, प्रशिक्षण, प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण की व्यवस्था करना तथा उनके साहित्य को प्रोत्साहन देना।
- राज्य के साहित्यकारों के दुर्लभ साहित्य, अप्राप्त साहित्यक, उत्कृष्ट और उपयोगी साहित्य शोध ग्रन्थों का पुनः प्रकाशन किया जाना। अप्रकाशित पाण्डुलिपियों का प्रकाशन करना अथवा प्रकाशन में सहायता देना।
- उत्तराखण्ड राज्य की ऐसी संस्थाएं जो प्राचीन भारतीय भाषाओं के साहित्य को प्रोत्साहित करने की निःस्वार्थ सेवा में लगी हों, उन्हें हिन्दी भाषा के अनुवाद/प्रकाशन में अनुदान देकर या उनके साहित्य को क्रय एवं विपणन कर सहायता प्रदान करना।
- राज्य सरकार की भाषा प्रोत्साहन नीति के अनुसरण में प्रचार-प्रसार के लिए जिला एवं राज्य स्तर पर कार्यशालाएं आयोजित करना और हिन्दी टंकण और आशुलिपि की प्रतियोगिताएं आयोजित करना तथा सफल प्रतियोगियों के लिए समुचित पुरस्कार की व्यवस्था करना।
- उत्तराखण्ड के विभिन्न अंचलों तथा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में समय-समय पर भारतीय भाषाओं एवं साहित्य के सम्मेलनों, समारोहों एवं गोष्ठियों को आयोजित करना।
- यह संस्थान विशेष रुप से अन्तर्राष्ट्रीय भाषाओं के अध्ययन केन्द्र रुप में कार्य करेगा। भाषा विशेष के छात्रों को संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य विदेशी भाषाओं के व्याकरण, साहित्य-साहित्यिक कालविशेष, साहित्य विशेष, ग्रन्थविशेष के अध्ययन की सुविधा प्रदान करेगा। संस्थान छात्रों के अध्ययन के लिए पृथक्-पृथक् अध्ययन केन्द्र भी स्थापित कर सकता है। अध्ययन की अवधि एक माह से लेकर तीन वर्ष तक की होगी और अध्ययन केन्द्रों की स्थापना राजकीय महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में की जा सकेगी। इसके अतिरिक्त विश्व के विभिन्न देशों के छात्र वर्तमान में संस्कृत एवं हिन्दी के अध्ययन की ओर विशेष रुचि ले रहे हैं। अतः संस्कृत और हिन्दी के अध्ययन केन्द्र के रुप में अन्तर्राष्ट्रीय स्वरुप को प्राप्त करने का प्रयत्न करना।
- भारत एवं विश्व के विभिन्न देशों, प्रदेशों के साहित्यकारों की विभिन्न देशों, प्रदेशों में सद्भावना यात्रा आयोजित करना।
- उत्तराखण्ड की क्षेत्रीय भाषा एवं बोली के साहित्य एवं कृत्यों को सुरक्षित करना एवं इन भाषाओं के साहित्यकारों को सम्मानित, समादृत और पुरस्कृत करना तथा गोष्ठियां, सम्मेलन व समारोह आयोजित करना।
- राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भाषा संस्थान द्वारा प्रकाशित पुस्तकों एवं साहित्य की प्रदर्शनियां आयोजित करना।
- दुर्लभ पुस्तकों को निःशुल्क, दान अथवा मूल्य देकर प्राप्त करना, शोधार्थियों को दुर्लभ पुस्तकों की छायाप्रतियाॅं मूल्य लेकर उपलब्ध कराना एवं दुर्लभ पुस्तकों की पुनःप्रकाशन की व्यवस्था करना।
- राज्य एवं देश की विभिन्न भाषाओं एवं बोलियों का तुलनात्मक अध्ययन करना, उनकी कार्य विशेष एवं स्थान विशेष की समानताओं/असमानताओं के आधार पर पाण्डुलिपियों एवं ताम्रपत्रों, भोजपत्रों आदि का अन्य भाषाओं में अनुवाद करना।
- अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय/क्षेत्रीय भाषा एवं बोली का प्रचार-प्रसार तथा अध्ययन/अध्यापन।
- क्षेत्रीय भाषा एवं बोली का मानकीकरण करवाना।
- क्षेत्रीय भाषा एवं बोली के शब्दकोष निर्माण एवं प्रकाशन करवाना।
- क्षेत्रीय भाषा एवं बोली में रचित साहित्य भाषा वैज्ञानिक अध्ययन की व्यवस्था करना।
- क्षेत्रीय भाषा एवं बोली के शिक्षण के लिए सरल पाठ्यक्रम तैयार करना एवं शिक्षण की व्यवस्था करना।
- विभिन्न भाषाओं, क्षेत्रीय भाषा एवं बाली के साहित्य का विश्वस्तरीय पुस्तकालय का निर्माण करना।
- क्षेत्रीय भाषा एवं बोली के अलिखित साहित्य का यांत्रिक विधियों द्वारा संकलन करना एवं उसे प्रचारित करना।
- ऐसे सभी अन्य प्रासंगिक कार्य करना जिनसे उपरिनिर्दिष्ट उद्देश्यों तथा कार्यकलापों को गतिशील करने में सहायता प्राप्त हो।